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Sunday, October 10, 2010

जागते ख्यालों की रातें

रात का वक़्त सोने के लिए होता है और आमतौर पर लोग रात को सोते ही हैं. पर कभी- कभी ऐसा होता है की नींद आती नहीं है या शायद हम खुद ही सोना नहीं चाहते. बिस्तर पर लेटे कभी छत को देखते हुए और कभी खिड़की से बाहर  देखते हुए जाने क्या-क्या सोचते रहते हैं.

अब यहाँ अगर मैं ये  कहूं  कि खिड़की के बाहर मैं चाँद तारों या नीले आसमान को देखती हूँ और उन्हें देख कर मुझे बड़े ऊँचे दर्जे के साहित्यिक ख्याल मन में आते हैं, तो ये बिलकुल गलत होगा और काफी नाटकीय भी लगेगा. गलत इसीलिए कि मेरी खिड़की से चाँद तारे कभी-कभार ही दिखते हैं. इन housing कॉलोनियों में जहाँ मनमर्जी से घरों की designing की गई है वहाँ खिडकियों के लिए चाँद तारे और दूर तक फैले नीले आसमान के लिए कुछ बहुत ज्यादा गुंजाईश नहीं बची है.
 और नाटकीय इस तरह की चाँद तारे और नीला आसमान ये सब तो किसी कविता,ग़ज़ल या फ़िल्मी गाने जैसा लगता है.
                          खैर, ये सब तो मूल विषय से हटकर कही गई बातें हैं. हमारा मुद्दा तो इस समय "रात्रि-जागरण" है.
 कभी ऐसा भी होता है की कुछ ख्याल, कल्पनाएँ,विचार और सपने इतने सुन्दर होते हैं की उनके बारे में सोचना नींद लेने से ज्यादा अच्छा लगता है.
                रात के समय जबतरफ शांति होती है, घर के सब लोग सो चुके होते हैं, यहाँ तक की चूहे और झींगुर भी किसी कोने में चुपचाप बैठे हैं या शायद हम खुद ही अपने ख्यालों में इस तरह खो जाते हैं की हमें "प्रकृति के इन violin वादकों " और "घरेलू घुसपैठियों" की आवाजें सुनाई ही नहीं देती. इस तरह ख्यालों का एक लम्बा सिलसिला चल निकलता है, जो समय, स्थान और  अन्य सभी वास्तविकताओं, बंधनों के परे हमें एक अलग ही दुनिया में ले जाता है. ऐसी दुनिया जो हमारी बनाई  हुई है, उसकी अच्छाई-बुराई, सुख-दुःख के अहसास सब हमारे ही बनाये हुए हैं.
इन ख्यालों का अंत तब तक नहीं हो पता जब तक हम खुद को नींद लेने के लिए विवश ना  करें. कम से कम अपने  बारे में तो मैं यही कहूँगी . क्योंकि एक बार जब कुछ सोचना शुरू करो तो फिर नींद का हाल कुछ ऐसा हो जाता है की आँखें भारी हैं पर नींद आ नहीं रही. आँखें बंद करने पर भी दिल-दिमाग जागता रहता है और आँखों  को ज्यादा देर तक बंद रहने नहीं देता. और फिर से एक बार खिड़की, दरवाजों पर लगे पर्दों, दीवार पर  लगी घडी और खिड़की से नज़र  आते टुकड़ा भर आसमान पर नज़रें  उलझने  लगती है.
                      पर सभी ख्याल अच्छे हों ऐसा ज़रूरी नहीं,  कुछ ख्याल बुरे भी होते हैं, कुछ डरावने, कुछ तरह-तरह की आशंकाओं , चिंताओं और संदेहों से भरे होते हैं. गुस्सा , निराशा, तनाव, परेशानियां जो हम किसी से कह नहीं पाते, जिनसे हम दूर भागना चाहते  हैं, वो सब रात होने पर हमारे साथ बिस्तर पर सोते हैं. जब तक आँखें खुली हैं, दिमाग जाग रहा है, तब तक वे ख्याल भी जागते हैं. जब आँखें सो जाती हैं तब ज़रूरी नहीं  की दिमाग भी सो ही  जाए, वो सिर्फ एक अवचेतन स्तिथि में चला जाता है और उन्ही ख्यालों से जो सोने से पहले आँखों में थे , उनके सपने बुनता है . और उन्ही सपनो को देखते-देखते रात गुज़रती है,  अगली सुबह जब हम जागते हैं, तो बीती रात के ख्याल और  सपने हमारे साथ जागते हैं. लेकिन दिन भर की भाग दौड़  में  हम उन ख्यालों को भूल जाते हैं. उन्हें अपने से दूर छिटका देने का प्रयास करते हैं. पर फिर रात आती है और एक बार फिर अच्छे -बुरे , सुन्दर-असुंदर,  सुख-दुःख, शांति-बैचेनी और डर-निश्चिन्ताओं के ख्याल अपने साथ लाती है, ताकि पिछली रात के सिलसिले को फिर से दोहराया जा सके, नए शब्दों में , नई कल्पनाओं में, नए दृष्टिकोण से.
                                  अब इस नए का अर्थ सकारात्मक  और नकारात्मक दोनों ही रूपों  में निकलने के लिए आप स्वतंत्र हैं. मुझे इस पर कोई निर्णय देने या निष्कर्ष निकालने के लिए ना कहें.

13 comments:

  1. good article, but again there were some mistakes like ki was spelled kee.
    Just one question, how did you choose such strange subject, as hardly a hand full of persons think about it so deeply, and that too has a majority of psychiatrists or research associates...
    anyways, good article, as it has been written in Hindi, as it's disappearing from gaze of people day-by-day.
    keep writing...

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  2. lekhan shaili prabhawi hai
    shuru ke para warnana'tmak our ant me nishkarsh ..
    acha combination hai.
    dil me ek khayal aaya ki agar koi puche... ye artical "raat" pe hai ya "neend" pe?
    our aapko sirf ek choose karna hai
    to iska reply mushkil hoga :)

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  3. thank you talat....main raat ko chunungi..kyunki raat ko main kafi kuchh sochti hu jo main nahi chahoongi ki mere chehare par un khayalon ka ks dikhe...neend zaroori hai par jab neend aankhon se door ho toh rata katna mushkil ho jata hai.

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  4. hi bhavana!

    it was a wonderful article ! evn i have same kind of experience at the time of sleeping at night!

    mostly people relate night to "pessimism" but with last few lines u made it more of optimistic! i agree with it as i have achieved
    many of my unaccomplished dreams in my fantasy world!

    thanks for the read!

    Regards,
    Jaspreet

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  5. kuchh lines padh kar baapu ke....My experience with truth" yaad aa gyaa

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  6. ek hakikat jo har kisi ko apne kareeb lagegi....

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  7. गलत इसीलिए कि मेरी खिड़की से चाँद तारे कभी-कभार ही दिखते हैं. इन housing कॉलोनियों में जहाँ मनमर्जी से घरों की designing की गई है वहाँ खिडकियों के लिए चाँद तारे और दूर तक फैले नीले आसमान के लिए कुछ बहुत ज्यादा गुंजाईश नहीं बची है.
    और नाटकीय इस तरह की चाँद तारे और नीला आसमान ये सब तो किसी कविता,ग़ज़ल या फ़िल्मी गाने जैसा लगता है.

    UR BEST LINES....

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  8. पर सभी ख्याल अच्छे हों ऐसा ज़रूरी नहीं, कुछ ख्याल बुरे भी होते हैं, कुछ डरावने, कुछ तरह-तरह की आशंकाओं , चिंताओं और संदेहों से भरे होते हैं. गुस्सा , निराशा, तनाव, परेशानियां जो हम किसी से कह नहीं पाते, जिनसे हम दूर भागना चाहते हैं, वो सब रात होने पर हमारे साथ बिस्तर पर सोते हैं.
    i like these lines absolutely true...

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  9. gud one ....i like ur......blog..........

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  10. hey ...hw come u write on these strange subjects .....and that too in heavy Hindi language.......I liked ur style liked it.......baki kuch samza nahi jyada ...seedha aadmi hoo sambhal lena aur baad mai matlab batana

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  11. जब आँखें सो जाती हैं तब ज़रूरी नहीं की दिमाग भी सो ही जाए, वो सिर्फ एक अवचेतन स्तिथि में चला जाता है और उन्ही ख्यालों से जो सोने से पहले आँखों में थे , उनके सपने बुनता है . और उन्ही सपनो को देखते-देखते रात गुज़रती है, अगली सुबह जब हम जागते हैं, तो बीती रात के ख्याल और सपने हमारे साथ जागते हैं...........एकदम मेरा सा खयाल लगता है यह। संवेदना बहुत अधिक संवेदना फैलाती पोस्‍ट। मेरे ब्‍लॉग पर आकर टिप्‍पणी करने का शुक्रिया।

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  12. रात्रि का प्रथम और द्वितीय प्रहर तो मेरे जैसे ब्लॉगरों के लिए सबसे ज्यादा productive होता है। असीम शांति के बीच लेखनी खुल कर चलती है।

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